मध्य प्रदेश के राज्यपाल श्री राम नरेश यादव ने १८ नवम्बर को भोपाल के भारत भवन में सूफीवाद पर तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि ईश्वर को प्रेम का रूप मानकर सम्पूर्ण सृष्टि से प्यार करना ही सूफीवाद की मूल भावना है। उन्होंने कहा कि प्रत्येक धर्म का यही तो सार है। श्री यादव ने कहा कि सूफीवाद की विचारधारा जब तक पूरी दुनिया में कायम है, तब तक इंसानियत बनी रहेगी। राज्यपाल ने कहा सूफीवाद आध्यात्मिक स्तर पर मानव के अंतर मन की एक अवधारणा है। आत्मा की परमात्मा तक पहुंचने की लालसा और उसके लिए किये जाने वाले प्रयत्न सूफीवाद का आधार हैं। उन्होंने कहा आध्यात्मिक ऊंचाईयां, मन की शांति, धर्म निरपेक्षता, इंसानों की समानता सूफीवाद के प्रमुख सिद्धांत हैं। धार्मिक आडम्बरों, नियमों, जाति भेद, रंगभेद और सीमाओं को सूफीवाद कभी बढ़ावा नहीं देता है। श्री यादव ने कहा कि सूफीवादी दर्शन से इंसानी अस्तित्व की सार्वभौमिकता का प्रभाव काफी विस्तृत और सकारात्मक हो जाता है। पूर्व में राज्यपाल ने सूफीवाद की परम्परा के अनुसार जल में गुलाब की पंखुरियां अर्पित कर संगोष्ठी का शुभारम्भ किया। संगोष्ठी का आयोजन दि फाउन्डेशन आफ सार्क राईटर एवं लिटरेचर, नई दिल्ली द्वारा किया गया था। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि टर्की की सीमेल नुर सरगुट थीं। संगोष्ठी में संगठन की अध्यक्ष श्रीमती अजीत कोर ने स्वागत भाषण देते हुए आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने अतिथियों को शाल भेंटकर उनका स्वागत किया।
राज्यपाल श्री राम नरेश यादव ने कहा कि सूफी परम्परा का आध्यात्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों में हमारी लोक परम्परा और लोक जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है। लोक स्मृतियों से उसका गहरा सरोकार है। सूफी साहित्य में लोक स्मृतियों में बसी कथाओं,गाथाओं और वाचिक परम्परा के तत्वों का समावेश होता है, इसलिए उनकी रचनाओं का भी समाज में गहरा प्रभाव पड़ा। सूफी रचनाकारों ने अरबी,फारसी के साथ-साथ हिन्दी शब्दों और मुहावरों का उपयोग कर अभिव्यक्ति का व्यापक रूप विस्तारित किया।
राज्यपाल श्री यादव ने मध्यप्रदेश के बुरहानपुर को सूफी दर्शन, साहित्य संरचना, तत्वज्ञान,धार्मिक विचारधारा, मत-मतान्तरों की गहन समीक्षा का केन्द्र बताते हुए कहा कि मध्य काल में बुरहानपुर नगर की पहचान ओलियाओं की नगरी के रूप में स्थापित हुई थी। इस नगर को अपनी तपो भूमि व कर्म भूमि बनाने वाले सूफी संत ही थे। उन्होंने भोपाल में इस संगोष्ठी के आयोजन को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संगोष्ठी में भाग लेने वाले विभिन्न राष्ट्रों के विचारकों द्वारा सूफीवाद पर व्यक्त विचारों से पूरी दुनिया में इंसानी भाईचारे, एकता, अखण्डता,प्यार और भेदभाव रहित समाज की रचना का संदेश जायेगा।
संगोष्ठी शुभारम्भ कार्यक्रम का सबसे प्रमुख आकर्षण था बाउल सिंगर सुश्री पार्वती द्वारा दो भक्ति नृत्य गीतों की भाव विभोर कर देने वाली प्रस्तुतियां। बहुत मधुर स्वरों के आरोह और अवरोह तथा नृत्य की मंत्रमुग्ध करती चपल भंगिमाओं ने उपस्थित श्रोताओं को आनंद की फुहारों में सराबोर कर दिया। अनेक श्रोता इन प्रस्तुतियों में मंत्रमुग्ध होकर ऐसे आकंठ डूब गये थे की वे साथ-साथ गाने से स्वयं को रोक नही सके थे। प्रस्तुतियों की समाप्ति पर उपस्थित लोगों ने देर तक तालियां बजाकर प्रस्तुतियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सीमेल नुर सरगुट ने कहा कि आध्यात्मिक प्रेम से दुनिया बहुत सुंदर बनती है। आपसी नफरत और नकारात्मक विचारधाराओं से दूर रहकर ही परमात्मा का वास्तविक चेहरा देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि संत की कभी मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा जीवित रहते हैं। हमें परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। यही सच्ची इंसानियत है। उन्होंने आमजनों से कहा कि सृष्टि के हर जीव से प्यार करने के साथ-साथ हमें अपने अंतरमन को उदार और विशाल बनाना होगा तभी हम क्षमा कर देने जैसे विलक्ष्ण गुणों को अपने अंतर में विकसित कर सकेंगे। यही परमात्मा की सीख है। उन्होंने कहा तसव्वुफ का अर्थ स्वतंत्रता होता है। यह स्वतंत्रता आपसी राग -द्ववेष, कटुता, मत विभिन्नता और आडम्बरों से आजादी पाना है।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए डा. आबिद हुसैन ने कहा कि आज का दौर आतंकवाद, अलगाववाद और नफरत का दौर है। धर्म के नाम पर एक दूसरे की खिलाफत की जा रही है। समय के इस खतरनाक मोड़ पर इन भयावह प्रश्नों के उत्तर खोजने निकलें तो सूफीवाद ही सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर की तरह सामने आता है। उन्होंने कहा कृष्ण के उपदेश और गांधी के संदेश वही हैं जो सूफीवाद की मूल अवधारणा है। उन्होंने कहा कि अंतरमन के नैतिक साहस और जीवन के मूल्यों को अपनाकर ही विषमता से पार पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संगीत और नृत्य हमारी आंतरिक आनन्द की अनुभूतियों को व्यक्त करने के मूल माध्यम हैं। श्री आबिद हुसैन ने कहा कि हमारा दिल गरीबों के लिए धड़कना चाहिए। उसे असमानता के विरूध सख्त होना चाहिए। विचारों का यही रास्ता सूफीवाद है।
इस अवसर पर इजिप्ट के डा. मटकोर, ईरान के डा. मरीम नियाजी, तुर्केमिनिस्तान के डा. उवेजोव अन्नागुड़ी पाकिस्तान के श्री सलीम आगा, श्रीलंका के श्री सामंत लनगाकून, नेपाल के प्रो. अभि सुबेदी, और अफगानिस्तान के सैय्यद अहमद चिश्ती भी उपस्थित थे। समारोह में राज्यपाल श्री राम नरेश यादव और विशिष्ट अतिथियों को अजमेर की दरगाह प्रतिनिधियों ने सिर पर साफा बांधकर और दरगाह की चादर भेंट कर सम्मानित किया। अंत में श्री मनमोहन सिंह मितवा ने आभार व्यक्त किया।
राज्यपाल श्री राम नरेश यादव ने कहा कि सूफी परम्परा का आध्यात्मिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक और रचनात्मक क्षेत्रों में हमारी लोक परम्परा और लोक जीवन पर गहरा प्रभाव रहा है। लोक स्मृतियों से उसका गहरा सरोकार है। सूफी साहित्य में लोक स्मृतियों में बसी कथाओं,गाथाओं और वाचिक परम्परा के तत्वों का समावेश होता है, इसलिए उनकी रचनाओं का भी समाज में गहरा प्रभाव पड़ा। सूफी रचनाकारों ने अरबी,फारसी के साथ-साथ हिन्दी शब्दों और मुहावरों का उपयोग कर अभिव्यक्ति का व्यापक रूप विस्तारित किया।
राज्यपाल श्री यादव ने मध्यप्रदेश के बुरहानपुर को सूफी दर्शन, साहित्य संरचना, तत्वज्ञान,धार्मिक विचारधारा, मत-मतान्तरों की गहन समीक्षा का केन्द्र बताते हुए कहा कि मध्य काल में बुरहानपुर नगर की पहचान ओलियाओं की नगरी के रूप में स्थापित हुई थी। इस नगर को अपनी तपो भूमि व कर्म भूमि बनाने वाले सूफी संत ही थे। उन्होंने भोपाल में इस संगोष्ठी के आयोजन को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि संगोष्ठी में भाग लेने वाले विभिन्न राष्ट्रों के विचारकों द्वारा सूफीवाद पर व्यक्त विचारों से पूरी दुनिया में इंसानी भाईचारे, एकता, अखण्डता,प्यार और भेदभाव रहित समाज की रचना का संदेश जायेगा।
संगोष्ठी शुभारम्भ कार्यक्रम का सबसे प्रमुख आकर्षण था बाउल सिंगर सुश्री पार्वती द्वारा दो भक्ति नृत्य गीतों की भाव विभोर कर देने वाली प्रस्तुतियां। बहुत मधुर स्वरों के आरोह और अवरोह तथा नृत्य की मंत्रमुग्ध करती चपल भंगिमाओं ने उपस्थित श्रोताओं को आनंद की फुहारों में सराबोर कर दिया। अनेक श्रोता इन प्रस्तुतियों में मंत्रमुग्ध होकर ऐसे आकंठ डूब गये थे की वे साथ-साथ गाने से स्वयं को रोक नही सके थे। प्रस्तुतियों की समाप्ति पर उपस्थित लोगों ने देर तक तालियां बजाकर प्रस्तुतियों का स्वागत किया।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सीमेल नुर सरगुट ने कहा कि आध्यात्मिक प्रेम से दुनिया बहुत सुंदर बनती है। आपसी नफरत और नकारात्मक विचारधाराओं से दूर रहकर ही परमात्मा का वास्तविक चेहरा देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि संत की कभी मृत्यु नहीं होती। वे हमेशा जीवित रहते हैं। हमें परमात्मा से प्रेम करना चाहिए। यही सच्ची इंसानियत है। उन्होंने आमजनों से कहा कि सृष्टि के हर जीव से प्यार करने के साथ-साथ हमें अपने अंतरमन को उदार और विशाल बनाना होगा तभी हम क्षमा कर देने जैसे विलक्ष्ण गुणों को अपने अंतर में विकसित कर सकेंगे। यही परमात्मा की सीख है। उन्होंने कहा तसव्वुफ का अर्थ स्वतंत्रता होता है। यह स्वतंत्रता आपसी राग -द्ववेष, कटुता, मत विभिन्नता और आडम्बरों से आजादी पाना है।
अध्यक्षीय भाषण देते हुए डा. आबिद हुसैन ने कहा कि आज का दौर आतंकवाद, अलगाववाद और नफरत का दौर है। धर्म के नाम पर एक दूसरे की खिलाफत की जा रही है। समय के इस खतरनाक मोड़ पर इन भयावह प्रश्नों के उत्तर खोजने निकलें तो सूफीवाद ही सर्वाधिक उपयुक्त उत्तर की तरह सामने आता है। उन्होंने कहा कृष्ण के उपदेश और गांधी के संदेश वही हैं जो सूफीवाद की मूल अवधारणा है। उन्होंने कहा कि अंतरमन के नैतिक साहस और जीवन के मूल्यों को अपनाकर ही विषमता से पार पाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि संगीत और नृत्य हमारी आंतरिक आनन्द की अनुभूतियों को व्यक्त करने के मूल माध्यम हैं। श्री आबिद हुसैन ने कहा कि हमारा दिल गरीबों के लिए धड़कना चाहिए। उसे असमानता के विरूध सख्त होना चाहिए। विचारों का यही रास्ता सूफीवाद है।
इस अवसर पर इजिप्ट के डा. मटकोर, ईरान के डा. मरीम नियाजी, तुर्केमिनिस्तान के डा. उवेजोव अन्नागुड़ी पाकिस्तान के श्री सलीम आगा, श्रीलंका के श्री सामंत लनगाकून, नेपाल के प्रो. अभि सुबेदी, और अफगानिस्तान के सैय्यद अहमद चिश्ती भी उपस्थित थे। समारोह में राज्यपाल श्री राम नरेश यादव और विशिष्ट अतिथियों को अजमेर की दरगाह प्रतिनिधियों ने सिर पर साफा बांधकर और दरगाह की चादर भेंट कर सम्मानित किया। अंत में श्री मनमोहन सिंह मितवा ने आभार व्यक्त किया।
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