राज्य शासन जन जागरूकता
के लिए करेगा प्रचार प्रसार
भोपाल :भारतीय दंड
संहिता की धारा 268 एवं 209 ध्वनि प्रदूषण के विरुद्ध सक्षम अधिकारियों को कार्यवाही
के अधिकार देती है। मध्यप्रदेश कोलाहल नियंत्रण अधिनियम में भी ध्वनि विस्तारक यंत्र
और ऐसे अन्य उपकरणों से होने वाले प्रदूषण की शिकायत के निवारण के लिये प्रक्रिया निर्धारित
है। उच्च न्यायालय ने अपने पारित आदेश में अपेक्षा की है कि विद्यार्थियों एवं युवाओं
में ध्वनि प्रदूषण के कारण होने वाली समस्याओं के संदर्भ में सूचना संचार माध्यमों
से व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाये। राज्य शासन ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश
के संबंध में सभी जिला कलेक्टर को विद्यार्थियों एवं युवाओं में ध्वनि प्रदूषण के कारकों
एवं उनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं के संबंध में विभिन्न संचार माध्यम से प्रचार-प्रसार
करवाने के निर्देश दिये हैं। इनमें नुक्कड़ नाटक, संगोष्ठी, विज्ञापन, एफ एम रेडियो
पर वार्ता, रिडल्स (पहेली) आदि शामिल हैं।
त्योहार, धार्मिक एवं
सामाजिक समारोह आदि में ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से होने वाले ध्वनि प्रदूषण
से नागरिकों विशेषकर वृद्ध एवं कमजोर व्यक्तियों तथा विद्यार्थियों को होने वाली परेशानियों
के संबंध में जनहित याचिका उच्च न्यायालय जबलपुर में लगाई गई थी । विगत 6 जनवरी को
उच्च न्यायालय द्वारा पारित निर्णय में उल्लेखित किया गया है कि ध्वनि प्रदूषण की समस्या
बड़ी बन गई है। इसका सबसे अधिक प्रभाव मानव पर ही पड़ता है। अत्याधिक ध्वनि के प्रभाव
से श्रवण शक्ति, आंशिक या पूर्ण बहरापन, रक्त दाब बढ़ना, हृदय की धड़कन तेज होना, पाचक
रसों के निर्माण में कमी आना, अनिद्रा आदि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती
हैं। तेज ध्वनि शारीरिक के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है। अनिद्रा से मानव
कार्य-क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
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