संसदीय गरिमा को उन्होंने है बढ़ाया - विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी के जन्म-दिन 30 जून पर विशेष
मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी जीवन के 67 बसंत देखने के बाद 30 जून को 68 वे वर्ष में प्रवेश कर रहे है। मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से जुड़े श्री रोहाणी ने विधानसभा अध्यक्ष के रूप में अपने संसदीय ज्ञान वाकपटुता, हाजिरजवाबी और विद्वता से संसदीय गरिमा में व्रद्धि की है। उनके नेतृत्व में मध्यप्रदेश विधानसभा की गिनती ऐसी विधानसभाओं में होने लगी है, जहा आम सहमति से कार्य संपादित होते है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधानसभा में तनाव के क्षण आते ही रहते हे और अनेक ऐसे मुद्दे होते है जिन पर बहुत गरमा-गरमी हो जाती है। ऐसे नाजुक क्षण में सदन का संचालन बिना तनाव लिये और बिना तनाव दिये करना बहुत कुशलता की बात है। श्री रोहाणी ने अपने इस गुण का बखूबी परिचय दिया है सभी राजनीतिक दलों के विधायक श्री रोहाणी की कार्यकुशलता और सहजता के कायल है। सार्वजनिक जीवन के लगभग 4 दशक पूरा करने वाले श्री ईश्वरादास रोहाणी के मन में हमेशा आम आदमी की पीड़ा रही है। विधानसभा की कार्यवाही के संचालन के दौरान अनेक मौको पर इसकी झलक देखने को हमे मिलती है। वे आम आदमी से जुडे़ मुद्दों को उठाने वाले विधायकों को सहयोग करने में कोई कोताही नहीं बरतते है। अनेक बार ऐसे मौके आते है जब वे इसके लिये संसदीय नियमों को भी दरकिनार करने में नहीं हिचकते।
श्री रोहाणी का सार्वजनिक जीवन ऐसी है कि वे युवाओं के लिये प्रेरणा-स्त्रोत बने हुए है। 30 जून 1946 को अविभाजित भारत के प्रमुख नगर कराची में जन्में श्री ईश्वरदास रोहाणी का गहरा नाता संस्कारधानी जबलपुर से रहा है। श्री रोहाणी के परिजन ने देश के विभाजन की पीड़ा को भोगा है। हालांकि श्री रोहाणी के परिजन जब भारत आये, उनकी उम्र मात्र एक वर्ष थी उन्होनें अपने परिवार की पीड़ा को अपने पिताजी और बुजुर्गो से सुना इसी पीड़ा ने उनके मन में सार्वजनिक जीवन में आने की प्रेरणा दी। श्री रोहाणी युवा अवस्था तक आते-आते भारतीय जनसंघ एवं राष्ट्रीय स्वंसेवक संघ से जुड़ गये। उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन की शुरूआत में जबलपुर की पानी, सड़क, बिजली जैसी मूलभूत समस्याओं को सार्वजनिक मंचों पर निर्भीकता से उठाया। वे पार्षद से लेकर विधायक और फिर संवौधानिक विधानसभा अध्यक्ष के पद तक पहुचें उन्होनें राजनीति में आम आदमी के दर्द को हर-स्तर पर देखा और समझा। इन्हीं सब परिस्थियों ने उन्हें कुशल वक्ता भी बनाया। आज विधानसभा में श्री ईश्वरदास रोहाणी की वाक-पटुता और हाजिर-जवाबी के सभी कायल हैं।
उनके राजनीतिक जीवन की चर्चा करें तो वे जबलपुर क्षेत्र से 1993 में पहली बार विधायक बने। इसके बाद 1998 में विधानसभा के लिये दोबारा चुने गये। 11 फरवरी 1999 को मध्यप्रदेश विधानसभा के उपाध्यक्ष चुनें गये। श्री रोहाणी वर्ष 2003 में जब तीसरी बार भारी बहुमत से जीतकर विधानसभा पहुचे तो उनके विधायी ज्ञान को देखते हुए उन्हें 16 दिसम्बर 2003 विधानसभा अध्यक्ष पद के लिए चुना गया। श्री रोहाणी के वर्ष 2008 में चैथी बार विधानसभा में जीतकर आये और उन्हें 7 जनवरी 2009 को विधानसभा अध्यक्ष पद के लिये दोबारा चुना गया। श्री रोहाणी की विधानसभा संचालन की अपनी ही एक अलग कार्यशैली है। वे उन विधायकों का विशेष ध्यान रखते है। जो निर्वाचन होकर पहली बार विधानसभा पहुचते है। अनेक मौकों पर वे नियमों से हटकर इन विधायको को प्रोत्साहित करते है और सार्वजनिक मुद्दो को उठाने के लिये मौका देते है। उनके मन में महिला विधायकों के प्रति भी विशेष सम्मान है, जिसे देखने का मौका विधानसभा की कार्यवाही के दौरान मिलता हैं। वे हमेशा सत्ता पक्ष और प्रतिपक्ष के बीच संतुलन बनाये रखने का कार्य कुशलतापूर्वक करते है।। वे हमेशा संसदीय प्रणाली की मर्यादा को तरजीह देते है। देश की अनेक विधानसभा ऐसी है जहा पर अनेक बार कुर्सिया, माइक एवं अन्य सामग्री उठाकर फेंकने के दृश्य देखने को मिलते है। इससे न केवल विधायकों की छवि खराब होती है, बल्कि देश की संसदीय प्रणाली को भी ठेस पहुचती है। उन्होंने विधायको को अनेक बार संसदीय प्रणाली की मर्यादा में रहकर अपनी बात कहने की समझाइश दी हैं इसका असर विधायको के आचरण में देखने को मिला है। वे गंभीर मुद्दों पर बहसे के दौरान सदन में अपने विनोदी स्वभाव से सदन के महौल को सहज और सरल बनाये रखते है।
विधानसभा अध्यक्ष श्री ईश्वरदास रोहाणी के मन में संसदीय प्रणाली एवं उसके मान्य नियमों में गहरी आस्था है। वे इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा ज्ञानार्जन के हिमायती भी है। उन्होंने आने के देशों में जाकर संसदीय कार्य-प्रणाली को समझा है। श्री रोहाणी ने 1998 में भारतीय संसदीय संघ के तत्वाधान में आयोजित युनाईटेड किंगडम, फ्रांस, बेल्जियम, जर्मनी, नीदरलैंड स्विटजरलैण्ड, आस्ट्रिया और इटली देश का दौरा कर वहा की संसदीय प्रणाली को समझा। वे वर्ष 2007 में इस्लामाबाद में आयोजित तीसरे राष्ट्रकुल संसदीय संघ एशिया क्षेत्र के सम्मेलन में भी शामिल हुए। श्री रोहाणी ने वर्ष 2008 में मलेशिया की राजधानी क्वालालंपुर में संसदीय सम्मेलन के दौरान अपने विचारों को रखा, जिसकी सराहना भी हुई। एक विशेष उपलब्धि भी उनके कार्यकाल की रही, जिसमे उन्होंने भोपाल में 74 वें पीठासीन अधिकारी का सम्मेलन भोपाल विधानसभा में किया। इस सम्मेलन में लोक अध्यक्ष श्रीमती मीरा कुमार भी शामिल हुई और उन्होनें इस आयोजन की सार्वजनिक मंच से प्रशंसा भी की।
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