आने वाले दिनों में दाल आदि का उत्पादन करने वाले कई लघु उद्योग बंद हो सकते है जिससे हजारो की तादाद में यहाँ काम करने वाले मजदूर बेरोजगार हो जायेंगे , स्थानीय व्यापार प्रभावित होगा सो अलग, इसके अलावा खाद्यान आदि का संकट भी उत्पन्न हो सकता है . मध्य प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के राज में दशको से पट्टो की मांग करने वालो को एक आस बंधी थी कि जो कभी पूर्वर्ती सरकारों ने नहीं किया वो शिवराज सिंह चौहान की सरकार कर दिखाएगी, भाजपा के विधायक गिरिराज किशोर पोद्दार को माधव नगर से मिला बहुमत इस बात का ही सबूत है
लेकिन पट्टो की समस्या का हल तो रहा दूर की बात वर्तमान में देश के कई हिस्सों में दाल आदि जैसे खाद्यान की बड़ी पूर्ति करने वाले माधव नगर के आधा सैंकड़ा लघु मझोले उद्योग बंद होने की कगार पर आ खड़े हुए है और अगर एक भी इकाई यहाँ बंद होती है तो यह शासन प्रशासन की असंवेदनशीलता का परिचय होगा .जिस 399 एकड़ भूमि को जिनके पुनर्वास के लिए आरक्षित रखा गया था उसपर वही पात्र लोग ही काबिज हुए . रहवास के बाद सबसे बड़ी समस्या रोजगार की भी थी जिसके लिए उपलब्ध पुनर्वास भूमि पर कच्चे पक्के तीन शेड आदि से शुरुआत धीरे धीरे कुछ लोगो ने की , इस प्रयास से जहा कुछ परिवारों को रोजगार मिला वही इससे मजदूरो को भी स्थायी रोजगार के अवसर मिलने लगे . पूर्व में यह क्षेत्र ग्राम पंचायत था और भूमि पुनर्वास की , इसलिए कुछ शासकीय विभागों की कुछ औपचारिकताये तकनीकी खामियों की वजह से अधूरी थी , इसी बात के चलते वर्तमान में कई इकाइयों पर तलवार सी लटक रही है , जिसके चलते उद्योग संचालको में दहशत सी व्याप्त है , कई संचालको से जब प्रबल सृष्टि ने इसको लेकर बात की तो उनका यह कहना है कि , शासन यातायात और प्रदुषण के कारण उन्हें यहाँ से स्थानांतरित करना चाहता है और वे भी शासन कि मंशा अनुरूप ही उद्योग भविष्य में चलाना चाहते है . लेकिन दशको से उद्योग चलाने वालो की भी शासन को एक बार जरुर सुननी चाहिए . अगर आज एकाएक उनकी मिलो की बिजली काट दी जाएगी तो वे सड़क पर आ जायेंगे इससे भविष्य में वे कोई उद्योग चलाने की स्थिति में ही नहीं रहेंगे . आज मुख्यमंत्री खुद देश विदेश घूमकर प्रदेश में नए नए उद्योगों को आमंत्रित कर रहे है दूसरी और दशको से चलने वाले लघु मझौले उद्योग बंद होने की कगार पर आ खड़े हुए है . संवेदनशील मुख्यमंत्री को इसपर विचार करते हुए ठोस और प्रभावी योजना के रास्ते जरुर खोलने चाहिए
कटनी ( मध्य प्रदेश ) - अखंड भारत देश के बंटवारे की वो कभी न भूलने वाली त्रासदी सिन्धी समाज ने कैसे भुगती है यह सिन्धी समाज ही अच्छी तरह से जानता है ,1947 में पश्चिम पाकिस्तान से जो सिन्धी समाज कटनी के टिकुरी में आकार बसा था उसे केंद्र सरकार ने यहाँ की 399 एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए दी , तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस 399 एकड़ भूमि को 12 शीटो में विभाजित कर इसका इंतजाम अपने पास रखकर कुछ पात्रो को रिहाइशी पट्टो का वितरण किया बाद में कुछ व्यवसायिक पट्टो का भी वितरण किया गया लेकिन बाद के कांग्रेस शासन काल में पट्टो के वितरण की संपूर्ण प्रक्रिया ही ठंडे बस्ते में डाल दी गयी जिसके चलते ऐसे लोग भी प्रभावित हुए जो पुनर्वास भूमि पर बस तो चुके थे लेकिन उन्हें पट्टा नहीं मिल पाया . आज इस 399 एकड़ भूमि पर गुजर बसर करने वाले वही पात्र लोग ही है जिनके लिए यह भूमि पुनर्वास के आरक्षित रखी गयी थी , लेकिन विडंबना देखिये बिना किसी शासकीय मदद के यहाँ पर बसे कुछ परिवारों ने दाल - राईस आदि जैसे जरुरी खाद्य सामग्री की मिलिंग करने का काम शुरू किया लेकिन पुनर्वास भूमि होने के चलते किसी न किसी शासकीय विभागों से कोई न कोई समस्या हमेशा मुंह बांये खडी मिली , जैसे तैसे अपने अपने सीमित साधनों संसाधनों से मेहनत कश समाज आज तक उद्योग चलाने की चुनौती का सामना कर रहे थे , लेकिन एकाएक नींद से जागे प्रदुषण विभाग द्वारा जारी फरमान के आधार पर बिजली विभाग कुछ इकाइयों की बिजली काटने का नोटिस जारी कर चूका है जिससे इन इकाइयों के संचालको , मजदूरो सहित अन्य वर्गो के सामने रोजी रोटी का संकट उत्पन्न होने का खतरा बढ़ गया है वो भी ऐसे समय में जब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद प्रदेश में उद्योगों को बढावा देने का काम कर रहे हैं . क्या मनुष्य के भोजन से जुड़े दाल- भात के लिए इकाइयों को चलाने वालो को यूँही दर दर विभागों में भटकने के लिए छोड़ दिया जायेगा ? या इनकी और अन्य सभी वर्गो की सहूलियत का ध्यान रखकर ही विकास की योजना को क्रियान्वित किया जायेगा ? संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सभी को आस है कि मात्र तकनीकी वजहों से वे इन उद्योगों को चौपट नहीं होने देंगे जिन उद्योगों को बसाने के लिए कई परिवारों ने तो अपना पूरा जीवन ही बिता दिया है .
बिना शासकीय मदद के लगाये खाद्य सामग्री के लघु मझोले उद्योग
पश्चिम पाकिस्तान से आये सिन्धी समाज के सामने रोजगार की एक बड़ी चुनौती भी सामने थी चूँकि किसी भी परिवार के पास कोई पूंजी तो थी नहीं जो अन्य जगह पर भूमि खरीद कर अपना व्यवसाय स्थापित करते . शासकीय मदद के नाम पर उसे सिर्फ यह पुनर्वास भूमि ही हासिल थी लेकिन सिन्धी समाज के कुछ परिवारों ने अपनी मेहनत और लगन के सहारे कुछ लघु उद्योग स्थापित कर दलहन से दाल आदि की मिलिंग का काम शरू कर दिया जो बाद में विस्तृत होता चला गया . लेकिन आज मात्र कुछ तकनीकी खामियों की वजह से इन लघु मझोले उद्योगों पर तलवार लटक सी गयी जिस पर शासन - प्रशासन को विचार कर बिना शासकीय मदद से चलने वाले इन उद्योगों की मदद करनी चाहिए जिससे इनको बचाया जा सके
पहले से ही मौजूद औद्योगिक क्षेत्र का विस्तार भर कर देने से हो सकता है समस्या का हल
मास्टर प्लान 2021 के अनुसार माधव नगर में बसी औद्योगिक इकाइयों को लमतरा में स्थानांतरित करना प्रस्तावित था जिसका कारण यातायात और प्रदुषण की समस्या है . जबकि माधव नगर से लगा हुआ ही एक औद्योगिक क्षेत्र है जिसका विस्तार भर कर देने से यातायात और प्रदुषण की समस्या का स्थायी हल हो सकता है लेकिन किसी भी जनप्रतिनिधि ने अभी तक अपनी जागरूकता का परिचय नहीं दिया है . इस औद्योगिक क्षेत्र में आवागमन के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 7 से सीधा आया जा सकता है वो भी बिना किसी बस्ती में प्रवेश किये बिना और यही नहीं इस औद्योगिक क्षेत्र के लिए शासन को भूमि अधिग्रहण भी नहीं करना पड़ेगा , यह औद्योगिक क्षेत्र नगर तथा ग्राम निवेश के उस नक्शे में ही है जिस के आधार पर ही नगर की विकास योजना बनायीं गई है . अभी अमकुही में फ़ूड पार्क बनाने की मंजूरी दी जा चुकी है जबकि यह किसी भी द्रष्टि से उपयुक्त नहीं माना जा रहा , जब नगर तथा ग्राम निवेश के पास पहले से ही एक औद्योगिक क्षेत्र मौजूद था तो क्यों नहीं उसे ही विस्तार दिया गया ? इसके विस्तार भर कर देने से माधव नगर में बसी तमाम छोटी बड़ी इकाइयों की हर समस्या का हल हो सकता है और इससे शासन को मिल वालो के लिए अन्य किसी भी भूमि का अधिग्रहण भी नहीं करना पड़ता ,
इससे जहा शासन को परेशानी नहीं होगी वही सभी मिल वालो के लिए भी यह उपयुक्त रहता . स्थानीय अन्य व्यापारी , मजदूर सभी वर्ग इससे पूर्व की तरह ही लाभान्वित होते रहते .
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