पानी के लिए अगर हम आपस में ही लड़ मरे , तो क्या हम मनुष्य कहलाने के हकदार है ? नहीं , हम तो जानवर कहलाने लायक भी नहीं रहेंगे । जानवर तो जल , जंगल और जमीन का कुछ इस्तेमाल भर ही करते है और हम कथित इंसान अपनी भ्रष्ट मति से प्रकर्ति को ही तोडना मरोड़ना चाहते है क्योकि हमारी शक्ल मनुष्यों जैसी है और हमारे काम शैतानो जैसे । इनदिनों पानी को लेकर तमिलनाडु और केरल के बीच तनाव बड़ा हुआ है और दोनों राज्यों के कथित कर्ता धर्ता अपने बयानों से इस तनाव को बढाने का ही काम कर रहे है । सुप्रीम कोर्ट दोनों राज्यों को इसके लिए फटकार लगा चूका है । पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम भी इस मसले को लेकर कह चुके है कि देश पानी को लेकर गृह युद्ध नहीं सह सकता । छोटे शहरो और कस्बो के अलावा बड़े शहरो में भी पानी को लेकर मामूली विवादों में हजारो जाने अभी तक जा चुकी है । अपने आपको सरकार चलाने के लिए ही पैदा हुआ मानने वाले कथित इंसानों ने प्रकर्ति द्वारा दिए गए वरदान जैसे जल , जंगल और जमीन का सत्यानाश सिर्फ अपने निजी फायदे के लिए करने की ठान रखी है ।हमारे वोट लेकर कुछ मुठी भर आदमी सरकार बन जाते है और अपनी मनमती से निर्णय ल