जब शरीर में बसी इस आत्मा को अपने परमात्मा के तत्त्व की पहचान हो जाती है तो जीवन सुख और विकास के पथ पर अग्रसर हो जाता है । मेरे जीवन की आम शुरुआत इस धरती पर जन्म लेने से होती है लेकिन जीवन में परमआनंद और विकास निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी महारज के उस ज्ञान से प्राप्त हुआ है , जिस ज्ञान को सदगुरु की कृपा से प्राप्त करने के बाद दुनिया के तमाम दुनियावी ज्ञान अपने आप ही समझ में चले आते है । यह ज्ञान कोई शब्द या उच्चारण भर नहीं है यह ज्ञान तो पूर्ण जानकारी है कण - कण में समाये ईश्वर , भगवान , अल्लाह , वाहेगुरु , गाड तथा अनेको अनेक नामो का जिनका नाम दुनिया वाले ले तो रहे होते है लेकिन वस्तु का पता नहीं होता । परमात्मा नाम की वस्तु समय के सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महारज जी की कृपा से ही प्राप्त होती है । यही ज्ञान भगवान कृष्ण ने अर्जुन को दिया था ।
सदगुरु बाबा जी की कृपा से ब्रह्मलीन ब्रह्मऋषि रूपलाल जी (कोटा वाले ) ने मुझे करीब १७ वर्ष पहले इस हर जगह मौजूद परमात्मा की जानकारी करा दी । इसके बाद के जीवन को में शब्दों में तो कह ही नहीं सकता , बस इतना कह सकता हू कि अब में कुछ नहीं करता बस यही कर्ता है । मुझे तो इसने अपना बेटा बना लिया है , मेरे हर पल का यही ख्याल रखता है । पिछले १५ वर्षो से में देश कि राजधानी दिल्ली के बुराड़ी रोड पर स्थित समागम मैदान में आयोजित निरंकारी संत समागम में जा रहा हूँ , इस बीच सिर्फ दो बार ही नहीं जा सका वो भी इसकी मर्जी थी ।
६४ वा वार्षिक संत समागम १२ , १३ , १४ नवम्बर २०११ को सदगुरु की छत्रछाया में आयोजित है । निरंकार परमात्मा साक्षात् सदगुरु रूप में यहाँ भौतिक रूप से विराजमान होता है । भारत देश के अलावा पूरे विश्व से भक्त जन यहाँ पर लाखो की तादाद में आते है , जैसे एक धागे में मोती रहकर माला बन जाते है वैसे ही । यहाँ पर सभी प्रबंध संत निरंकारी मिशन के सेवादल के बहन भाई और भक्त जन ही करते है । एक परमात्मा की जानकारी प्राप्त कर चुके लाखो भक्तो की भावनाओ का एक अनुष्ठान है यह संत समागम । यह सुअवसर होता है सदगुरु से सीधे रहमते प्राप्त करने का । तरह तरह की भाषा , वेशभूषा , संस्कृति यहाँ पर एक ज्योति के प्रकाश पुंज को प्रकट कर रही होती है । लगभग ४५० एकड़ में एक पूरी दुनिया सी बस जाती है । मेरे सदगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने मेरे जैसे लाखो करोडो का जीवन स्वर्ग बना दिया है , में तो बस थोडा सा ही समय निकाल कर इसकी ढेर सारी रहमते लेने जाता हूँ । मेरे अन्दर ढेर सारी कमियां है फिर भी मेरा सदगुरु मुझे अपनी शरण में लेता है और इस स्वर्ग का हिस्सेदार मुझे भी बनाता है । इस बार में अकेला अपने दो मित्रो और कटनी की साध सांगत के साथ इस समागम में जा रहा हूँ , मेरे बच्चो की परिक्षाए है इसलिए मेरा परिवार नहीं जा पा रहा है । मेरा सदगुरु तो समागम में मौजूद होने के साथ निरंकार रूप में मेरे परिवार के साथ घर में भी रहेगा यह तो हर समय हर जगह मौजूद रहता है , पूरे ब्रह्माण्ड में इसकी मौजूदगी रहती है और इस पूर्ण परमात्मा ने मुझ तुच्छ को अपना बना लिया है अब जो भी है यही है । इसलिए में तो चला धरती पर बसे स्वर्ग में ।
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